भूमिका में:
विश्व में प्रचलित शासन प्रणालियों और भारत की शासन व्यवस्था -
विश्व में मुख्यत: एकात्मक और संघीय शासन प्रणालियों का प्रचलन देखने को मिलता है। भारत की शासन व्यवस्था इन दोनों प्रणालियों के मध्य विद्यमान संतुलन पर आधारित है। यह संघीय होते हुए भी एकात्मक शासन व्यवस्था की ओर झुकी हुई है।
विषय-वस्तु में:
सहकारी संघवाद और उसकी पृष्ठभूमि पर चर्चा -
→ वर्तमान में सहकारी संघवाद की संकल्पना पर काफी ज़ोर दिया जा रहा है। इसमें समस्याओं के समाधान के लिये केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों की सामूहिक भागीदारी पर बल दिया जाता है। इस संदर्भ में भारतीय शासन प्रणाली के सहकारी संघवाद की संज्ञा दी जा सकती है।
→ स्वतंत्रता पश्चात् के आरंभिक वर्षों में भारत में सहकारी संघवाद की भावना प्रबल नहीं हो गई थी परंतु 1990 के पश्चात् केंद्र में गठबंधन व विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकार बनने से परिसंघवाद की भावना को बल मिला। हालाँकि आपसी विवादों तथा स्वार्थपूर्ण राजनैतिक उद्देश्यों ने सहकारी संघवाद के मार्ग में बाधा पैदा की जिसके कारण सकारात्मक परिणाम नहीं मिल सका।
सहकारी संघवाद की दिशा में उठाए गए कदमों पर चर्चा -
→ वर्तमान में सहकारी परिसंघवाद की सकारात्मक भूमिका को देखते हुए इस दिशा में सार्थक पहल की जा रही है, जिससे कि भारत की वास्तविक सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का बेहतर समाधान हो सके।
→ योजना आयोग की समाप्ति को सहकारी संघवाद की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, क्योंकि अब नीति निर्माण व उसके व्रियान्वयन में राज्यों को अधिक स्वतंत्रता प्राप्त हो सकेगी।
→ साथ ही वित्तीय आवंटन का कार्य वित्त मंत्रालय द्वारा होने से केंद्र-राज्य संवाद में भी वृद्धि होगी।
→ इसी प्रकार नीति आयोग शासी परिषदों की बैठकों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों व अन्य सदस्यों के बीच टीम इंडिया की भावना पर बल देना भी सहकारी संघवाद को प्रोत्साहित करेगा।
→ 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत करना भी सहकारी संघवाद को प्रबल करता है।
→ इससे राज्यों की आर्थिक निर्भरता केंद्र पर कम होगी और राज्य को उसकी आवश्यकतानुसार योजनाओं के निर्माण व व्रियान्वयन में भी स्वतंत्रता प्राप्त होगी।
→ GST परिषद में भी राज्यों को निर्णायक भूमिका प्रदान की गई है, जो कि सहकारी संघवाद का उत्तम उदाहरण है।
निष्कर्ष
विभिन्न सुधारों व अन्य सुधारों के साथ वर्तमान में विद्यमान संरचनाओं में प्रशासकीय व विधायी स्तर पर उत्पन्न असुविधाओं के समाधान द्वारा सहकारी संघवाद को सशक्त किया जा सकता है। लेकिन स्वार्थपूर्ण राजनैतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिये राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद और अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग सहकारी संघवाद के साथ-साथ केंद्र-राज्य संबंधों को भी प्रभावित करता है। सरकारिया व पुंछी आयोग की सिफारिशें तथा संघ सरकार की देश की एकता-अखंडता को बनाए रखने की इच्छाशक्ति सहकारी संघवाद को मज़बूत करने में सहयोगी सिद्ध होगी।