भूमिका में:
समान नागरिक संहिता का परिचय -
शादी, तलाक, गोद लेना, संपत्ति का अधिकार आदि के संबंध में सभी धर्म, जाति, वर्ग के लोगों को एक-समान कानूनी व्यवस्था के अंतर्गत लाने वाली संहिता ‘समान नागरिक संहिता’ कहलाती है।
विषय-वस्तु में:
समान नागरिक संहिता के कानूनी प्रावधानों के बारे में -
संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता का उल्लेख है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी अनेक मामलों, जैसे- ‘मोहम्मद अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम’ तथा ‘सरला मुद्गल बनाम भारत संघ’ केस में केंद्र सरकार को UCC के लिये निर्देशित किया गया है।
भारत में समान नागरिक संहिता को लाने के पीछे निम्नलिखित आवश्यकताएँ बताई जा रही हैं-
→ विभिन्न धर्मों के अपने अलग-अलग सिविल कानून होने के कारण न्यायपालिका में भ्रम की स्थिति विद्यमान रहती है तथा निर्णय देने में कठिनाई के साथ-साथ समय भी अधिक लगता है।
→ समय-समय पर न्यायपालिका द्वारा दिये गए विभिन्न निर्णयों का पालन नहीं किया जा रहा। जैसे-शमीम आरा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य।
→ कानून समय के साथ परिवर्तित होते हैं परंतु पर्सनल कानूनों का कार्यान्वयन उस धर्म के ही अधिकांश रूढ़िवादी तत्त्वों के हाथों में होने के कारण वे समय पर बदल नहीं पा रहे हैं जिससे उन समाजों के पिछड़ने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
→ अधिकांश पर्सनल कानूनों के प्रावधान महिलाओं की स्वतंत्रता तथा उनके मौलिक अधिकारों का हनन करते हैं, जैसे-मुस्लिम धर्म के केस में तलाक-उल-बिद्दत के तहत दफा में तीन बार तलाक बोलकर तलाक देना तथा ईसाईयों के केस में तलाक की स्थिति में कानूनी रूप से 2 साल अलग रहना आदि।
→ बांग्लादेश तथा पाकिस्तान सहित 22 मुस्लिम देशों ने किसी-न-किसी रूप में ट्रिपल तलाक पर रोक लगाई है तथा तलाक देने की प्रक्रिया में राज्य के हस्तक्षेप को भी निर्धारित किया है। जैसे-टर्की, साइप्रस, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया आदि।
समान नागरिक संहिता से संबंधित विवाद -
→ इसके पक्ष में लोगों का कहना है कि यह धर्म के भेदभाव को खत्म कर देगा। वहीं इसके आलोचकों का कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रतिष्ठिापित मौलिक अधिकार यथा-धार्मिक अभ्यासों की स्वतंत्रता का अतिक्रमण करेगा और देश की धार्मिक विविधता का हरण करेगा।
→ सामान्यत: समान नागरिक संहिता के विपक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि इससे हिन्दू रीति-रिवाज़ों को दूसरे धर्मों पर आरोपित कर दिया जाएगा।
→ अनेक लोगों का मानना है कि UCC के स्थान पर विभिन्न धर्मों के पर्सनल कानूनों का हिन्दू सिविल संहिता की तरह संहिताकरण कर दिया जाए।
→ पुर्तगाल, दमन-दीव, दादरा तथा नगर हवेली में लागू पुर्तगाली सिविल प्रक्रिया संहिता में वहाँ रहने वाले विभिन्न धर्मों के लोगों के हिसाब से प्रावधान किये गए हैं। अनेक लोगोें का मानना है कि UCC में सभी पर्सनल कानूनों के अच्छे प्रावधानों का समावेश किया जाए।
→ कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत गोद लेेने के अधिकार के बारे में विभिन्न न्यायालयों द्वारा की गई व्याख्या की जद में ईसाइयों तथा मुस्लिमों को भी लाया जाए।
→ एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि लगभग 90% मुस्लिम महिलाएँ तीन तलाक तथा बहुविवाह के खिलाफ हैं।
निष्कर्ष
जवाहरलाल नेहरू द्वारा हिन्दू सिविल संहिता पेश करते समय कहा गया था कि समान नागरिक संहिता का समय अभी नहीं आया है तथा इसके लिये समाज के अंदर से आवाज उठनी चाहिये जो कि अब सत्य होता प्रतीत हो रहा है। समान नागरिक संहिता को राजनीतिक मुद्दा बनाने की जगह महिलाओं समेत सभी वर्गों के नागरिकों के मौलिक अधिकारों हेतु वरीयता देनी होगी।