भारत की अदालतों में विभिन्न कारणों से मामलों के निदान में अधिक समय लगता है तथा इनमें एक अति-महत्त्वपूर्ण कारण है अधीनस्थ न्यायाधीशों की योग्यता। विगत कई दशकों से यह चर्चा जारी है कि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना की जानी चाहिये या नहीं। विधि एवं न्याय की स्थायी संसदीय समिति ने इसकी स्थापना की सिफारिश की है, विधि आयोग ने भी अपनी पहली, आठवीं तथा ग्यारहवीं रिपोर्ट में इसकी स्थापना का समर्थन किया है। अपने दो निर्णयों में उच्चतम न्यायालय ने भी इसकी स्थापना की अनुशंसा की है।
लाभ :
→ प्रवेश स्तर पर भर्ती एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष एजेंसी द्वारा खुली प्रतियोगिता के जरिये की जाएगी, जो कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी।
→ अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों के लिये यह एकसमान सेवा-शर्तों को सुनिश्चित करेगा तथा उन्हें अपनी क्षमता सिद्ध करने के लिये विस्तृत क्षेत्र प्रदान करेगा।
→ चूँकि अधीनस्थ न्यायालयों से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश चुने जाते हैं और उच्च न्यायालयों से सर्वोच्च न्यायालय के, अतः यह पूरी व्यवस्था के भीतर योग्यता एवं प्रतिभा सुनिश्चित करेगा।
→ यह भारत के संघीय ढाँचे को मजबूती प्रदान करेगा, क्योंकि केंद्रीय रूप से भर्ती किये गए कर्मी राज्य तथा केंद्र दोनों स्तरों पर कार्य करेंगे।
→ उच्च न्यायालयों में बाह्य तत्त्वों को समाहित करने का उद्देश्य बेहतर ढंग एवं आसानी से पूर्ण हो सकता है, क्योंकि अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के सदस्यों को अंतर्राज्यीय स्थानांतरण पर कोई मानसिक अवरोध नहीं होगा।
चुनौतियाँ:
→ ऐसा तर्क दिया जाता है कि अधीनस्थ न्यायाधीश मुख्यतः ट्रायल केस में व्यस्त रहते हैं, जहाँ स्थानीय भाषा का महत्त्व अधिक है।
→ यह अधीनस्थ न्यायालयों पर उच्च न्यायालयों के नियंत्रण में व्यवधान उत्पन्न करेगा तथा एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका के संवैधानिक सिद्धांतों के विपरित होगा।
→ उपरोक्त चुनौतियों के बावज़ूद उचित एवं त्वरित न्याय प्रदान करने के लिये अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की स्थापना समय की आवश्यकता है। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा देश भर में विधियों एवं प्रक्रियाओं को बेहतर तरीके से लागू करने में सक्षम बनाएगा तथा सुसंगत प्रक्रिया के फलस्वरूप बेहतर न्यायिक प्रशासन को बढ़ावा देने मे मदद मिलेगी।