देश के विकास में महिला श्रम बल के रूप में देश की आधी आबादी का योगदान महत्त्वपूर्ण होता है। भारत में 1999-2000 में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी दर 34 प्रतिशत थी, जो 2011-12 में घटकर 27 प्रतिशत रह गई। जबकि इस दौरान देश के आर्थिक विकास की वृद्धि दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
महिलाओं की श्रम बल में कम भागीदारी के लिये ज़िम्मेदार कारक-
→ NSSO रोज़गार व श्रम की अपनी परिभाषा में घरेलू काम-काज़ की गणना नहीं करता, जहाँ महिलाओं की भागीदारी लगभग शत-प्रतिशत होती है। इस प्रकार घरेलू महिलाओं की गतिविधियाँ श्रम के अंतर्गत गिने जाने से वंचित रह जाती हैं।
→ कामकाज़ी महिलाओं के प्रति भारतीय समाज में न्यूनाधिक रूप में विद्यमान रूढ़िवादी सोच भी इनकी भागीदारी को बाधित करती है।
→ कार्यस्थल पर सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण भी महिलाओं के श्रम बल में शामिल होने के लिये उपयुक्त वातावरण निर्मित नहीं हो पा रहा है।
→ महिलाओं में शिक्षा का निम्न स्तर और कौशल तथा प्रशिक्षण की कमी भी उन्हें आधुनिक उत्पादन तकनीकों के प्रति अयोग्य बनाती हैं।
→ परिवार-बच्चों और घरेलू काम की दोहरी ज़िम्मेदारी भी महिलाओं की श्रम बल में कम भागीदारी के पीछे महत्त्वपूर्ण कारक है।
→ उन क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों का अभाव, जहाँ महिलाओं को विशिष्ट कौशल की आवश्यकता होती है। आर्थिक सर्वेक्षण में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि भारत महिलाओं के लिये अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने के लिये संभावित कपड़ा क्षेत्र का दोहन नहीं कर रहा है।
→ भारत की विकास रणनीति घरेलू मांग और उच्च मूल्य वाली सेवा निर्यात पर ध्यान केंद्रित करती है, जो महिलाओं के लिये बहुत कम रोज़गार के अवसर पैदा करती है।
अतः स्पष्ट है कि जहाँ एक ओर भारत ने आर्थिक विकास की दौड़ में तेज़ गति प्राप्त की, वहीं आर्थिक गतिविधियों तथा भारत के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी में लगातार कमी होती गई। देश के अधिक तीव्र और सतत् विकास के लिये महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के उपाय किये जाने की ज़रूरत है।