→ भारतीय कला एक लंबी अवधि में विकसित हुई है। प्राचीन हड़प्पा सभ्यता से लेकर आधुनिक समय तक धर्म,दर्शन और परंपरा के कई तत्त्वों के सम्मिश्रण से यह अत्यंत समृद्ध हुई है और इसकी निरंतरता आज भी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में बनी हुई है।
→ धार्मिक क्षेत्र में हड़प्पा एवं वैदिक सभ्यता के विश्वासों, जैसे-जल पूजा,अग्नि पूजा, पशुपति पूजा, वृक्ष पूजा,विभिन्न देवताओं एवं प्रकृति की पूजा,यज्ञ परंपरा आदि तथा बौद्ध,जैन,शैव,भागवत् एवं शाक्त आदि धर्मों के तत्त्वों को हम आज भी चित्र, प्रतीक एवं मूर्तियों में देख सकते हैं। वर्तमान समय में धर्म के क्षेत्र में पीपल की पूजा,नाग पूजा,यज्ञ परंपरा,गाय एवं कूबड़ वाले बैल का सम्मान,स्वास्तिक चिह्न का शुभ कार्यों में प्रयोग,विभिन्न देवताओं जैसे शिव,विष्णु आदि की मूर्तियों की उपासना तथा इन धर्मों के विश्वास एवं परंपराएँ,बुद्ध एवं महावीर की उपासना,इस्लाम धर्म की मान्यता आदि तत्त्वों की निरंतरता वास्तुकला एवं चित्रकला में हम आज भी देख सकते हैं जो प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक जीवन का मार्गदर्शन करती रही हैं। साथ ही,दर्शन के क्षेत्र में हड़प्पा और वैदिककालीन बहुदेववादी विचार एवं दर्शन, एकेश्वरवाद,सन्यास की अवधारणा,पतंजलि की योग परंपरा,भक्ति और सूफी दार्शनिकों के विचारों की साहित्य,कला के माध्यम से हम आज भी इनकी अनुभूति करते हैं। आज भारत संपूर्ण विश्व में योग के माध्यम से हमारी प्राचीन वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को साकार कर रहा है।
→ हड़प्पा एवं वैदिककालीन शवाधान पद्धतियाँ तथा विभिन्न संस्कार,गुरु-शिष्य परंपरा, पूजा-पद्धतियों आदि की निरंतरता को भी हम कला के अन्य क्षेत्रों के माध्यम से देख सकते हैं; जैसे प्राचीनकालीन स्थलों के उत्खननों से प्राप्त साक्ष्य एवं साहित्य एवं महाकाव्य (जैसे-रामायण) आदि जो आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में रामलीला का मंचन होना।
→ प्राचीन काल में विकसित कला के विभिन्न रूप,जैसे मूर्ति कला,स्थापत्य कला, चित्रकला,संगीत कला आदि की निरंतरता आज भी बनी है। वर्तमान की नगरीय योजना पद्धति हड़प्पा सभ्यता की नगरीय योजना से प्रेरित है। मौर्यकालीन सारनाथ स्तम्भ के शीर्ष का प्रयोग भारत सरकार द्वारा सरकारी चिह्न के रूप में किया जा रहा है। प्राचीन दक्षिण भारत से संबंधित नटराज की मूर्ति,भरतनाट्यम,कथकली आदि भी भारतीय नृत्य परंपरा का आधार हैं। वर्तमान मधुबनी चित्रकला शैली,कलमकारी चित्रकला आदि प्राचीन काल का ही विकसित रूप हैं। प्राचीन काल में विकसित कव्वाली,ख्याल आदि विभिन्न रागों का आज भी संगीत कला के क्षेत्र में प्रयोग हो रहा है।
→ इस प्रकार,प्राचीन कला की विभिन्न परंपराएँ आज भी जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं तथा उसकी निरंतरता विभिन्न क्षेत्रों में दृष्टिगोचर हो रही है।