भारत सांस्कृतिक रूप से काफी धनी देश है। भारत की भाषायी विविधता इस सांस्कृतिक विरासत को और भी प्रचुरता प्रदान करती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 780 भाषाएँ बोली जाती हैं। व्यापकता, पुरातनता तथा साहित्यिक प्रचुरता के आधार पर कुछ भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में चिह्नित किया गया है।
साहित्य अकादमी ने किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने हेतु निम्नांकित चार मापदंडों का निर्धारण किया हैः
→ 1500-2000 वर्षों की अवधि में अपने शुरुआती ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की उच्च पुरातनता।
→ प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक समूह, जिसे वक्ताओं की पीढि़यों द्वारा एक बहुमूल्य विरासत माना जाता है।
→ साहित्य परंपरा मौलिक होनी चाहिये तथा किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार ली गई नहीं होनी चाहिये।
→ शास्त्रीय भाषा तथा साहित्य आधुनिक से अलग हो, शास्त्रीय भाषा तथा इसके बाद के रूपों या इसकी शाखाओं में अनिरंतरता भी हो सकती है।
अब तक कुल छः भारतीय भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है, ये हैं:
1. तमिल 2. संस्कृत 3. तेलुगू
4. कन्नड़ 5. मलयालम 6. उडि़या
शास्त्रीय भाषाओं को निम्न लाभ उपलब्ध हैं:
→ शास्त्रीय भाषा के अध्ययन हेतु उत्कृष्टता केंद्र (Center of Excellence) की स्थापना के लिये आर्थिक मदद मिलती है।
→ भाषा में श्रेष्ठता के लिये दो प्रमुख वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार।
→ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को शास्त्रीय भाषा हेतु कम-से-कम केंद्रीय विश्वविद्यालयों में निश्चित संख्या में पेशेवर पीठों की स्थापना करने के लिये अनुरोध कर सकता है।
→ यद्यपि शास्त्रीय भाषा की मान्यता प्रदान करने के कुछ मामलों, यथा- मलयालम भाषा के संबंध में कुछ विवाद भी प्रकट हुए, फिर भी यह भाषाओं एवं उनके साहित्यों के संरक्षण और उनकी वैश्विक पहुँच बनाने में काफी सहायक है।