→ सल्तनत काल में ही भारतीय तथा इस्लामी शैलियों की विशेषताओं से युक्त स्थापत्य का विकास हुआ, जिसे हिंदू इस्लामी या इंडो-इस्लामिक शैली कहा गया। इसी का विकास-क्रम मुगलकालीन स्थापत्य ‘फतेहपुर सीकरी’ में देखने को मिलता है।
→ इंडो-इस्लामिक शैली की प्रमुख विशेषताओं में भारतीय शहतीरी शिल्पकला और मेहराबी कला का समन्वय, इमारतों की साज-सज्जा में भारतीय अलंकरण और इस्लामी सादगी का समन्वय तथा जोड़ने में अच्छे गारे का इस्तेमाल और डॉटदार पत्थरों का प्रयोग शामिल है। मुगल वास्तुकला इंडो-इस्लामिक शैली का अंतिम पड़ाव है, जिसमें मीलों घेरे वाला शहर तथा घुमावदार, कोणदार और रंगीन मेहराब का इस्तेमाल, पित्रादूरा तकनीक आदि प्रमुख विशेषताएँ हैं। फतेहपुर सीकरी का किला इंडो-इस्लामी स्थापत्य का बेहतरीन उदाहरण है।
→ आगरा से 36 किलोमीटर पश्चिम में स्थित लाल बलुआ पत्थर से निर्मित फतेहपुर सीकरी अकबर की महत्त्वाकांक्षी वास्तुकलात्मक परियोजना का प्रतिबिंब है। यहाँ दो श्रेणियों के भवन हैं- धार्मिक एवं लौकिक। धार्मिक भवनों जैसे- जामा मस्जिद और बुलंद दरवाज़ा में इस्लामी प्रभाव ज्यादा दृष्टिगोचर होते हैं, जबकि लौकिक या धर्म निरपेक्ष भवनों (प्रशासनिक भवन, महल या विविध) में भारतीय तत्त्वों की अधिकता है। जोधाबाई के महल में हिन्दू एवं जैन मंदिरों की विशेषता देखने को मिलती है।
→ पंचमहल की सपाट छत को सहारा देने के लिये विभिन्न स्तंभों का इस्तेमाल किया गया है, जो मंदिरों एवं विहारों की शैली को दर्शाता है। पाँच मंजिला पंचमहल या हवामहल मरियम-उज-जमानी के सूर्य को अर्घ्य देने के लिये बनवाया गया था। यहीं से अकबर की मुसलमान बेगमें ईद का चाँद देखती थीं। जोधा का महल प्राचीन घरों के ढंग का बनवाया गया था। इसे बनवाने तथा सजाने में अकबर ने अपनी रानी की हिंदू भावनाओं का विशेष ख्याल रखा। भवन के अंदर आँगन में तुलसी का चौरा है और सामने दालान में एक मंदिर के चिह्न हैं। दीवारों में मूर्तियों के लिये आले बने हैं। कहीं-कहीं दीवारों पर कृष्ण लीला के चित्र हैं, जो बहुत मद्धिम पड़ गए हैं। इसी प्रकार टोडरमल के महल या तानसिंह के महल में हिंदू प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
→ कहने का तात्पर्य यह है कि फतेहपुर सीकरी में अकबर के ‘सुलह-ए-कुल’ की नीति का बिंब हिंदू-मूस्लिम स्थापत्य के सांमजस्य के रूप में देखा जा सकता है।