उत्तर :
दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य- ये दोनों ही भारत की सांस्कृतिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। इसे निम्न रूप में देखा जा सकता है -
दिल्ली सल्तनत |
मुगल साम्राज्य |
स्थापत्य कला → दिल्ली सल्तनत में तुर्की स्थापत्य के प्रभाव से भारत में इंडो- इस्लामिक शैली का विकास हुआ। इसमें बल्ली शहतीरों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर मेहराबों तथा गुंबदों का प्रयोग हुआ है। इससे निर्माण हेतु स्तंभों की आवश्यकता घटने से विशाल सभाओं का निर्माण संभव हुआ। → सजावट के लिये पशु-पक्षिओं के चित्र के स्थान पर ‘अरेबेस्क’ का प्रयोग आरम्भ हुआ, जिसमें ज्यामितीय प्रतीकों के साथ-साथ कुरान की आयतों को स्थान दिया गया। → तुगलक काल में ढलवां दीवारों का प्रयोग किया गया, जिससे सुदृढ़ किलों का निर्माण संभव हुआ। लोदी काल में चार बाग शैली का विकास हुआ। → कुब्बत-उल- इस्लाम मस्जिद, अढाई दिन का झोपड़ा, कुतुबमीनार, आलाई दरवाजा़, हौज़ खास तथा तुगलकाबाद का किला इस काल के प्रमुख इमारतों में शामिल हैं। संगीत: → सल्तनत काल में तुर्कों की प्रसिद्ध संगीत कला का प्रभाव भारत पर पड़ा। भारत में रबाब तथा सारंगी जैसे वाद्य यंत्रों का विकास हुआ। खुसरो के प्रयास से सितार तथा तबले का विकास हुआ। संगीत के नए नए सिद्धांतों को रचने के कारण अमीर खुसरो को नायक कहा गया। साहित्य → शंकर, रामानुज ,मध्वाचार्य तथा वाल्लभाचार्य, जैसे संतों द्वारा संस्कृत साहित्य में बड़ी मात्रा में लिखा गया। विज्ञानेश्वर ने मिताक्षरा की रचना की। फिरदौसी, सादी, अमीर खुसरो जैसे कवियों ने फारसी साहित्य के विकास को बढ़ावा दिया। खुसरो के द्वारा खड़ी बोली का विकास हुआ। हिंदी साहित्य के प्रसिद्द काव्य पद्मावत की रचना जायसी ने इस काल में की थी। धार्मिक विचार → इस्लाम में सूफी धारा का तीव्र प्रसार इसी युग में हुआ था। इसमें तसव्वुफ के सिद्धांत के तहत ख़ुदा तथा बंदे के मध्य प्रेम को स्वीकार किया गया। वहीं हिन्दू धर्म में भक्ति आन्दोलन का तीव्र प्रसार हुआ। गुजरात में नरसी मेहता, राजस्थान में मीरा, उत्तर प्रदेश में सूरदास तथा बंगाल में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भक्ति आंदोलन का तीव्र प्रसार किया गया। कबीर जैसे संतों ने धार्मिक अंधविश्वासों का विरोध करते हुए सामाजिक समता को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया। |
→ स्थापत्य कला के विकास का यह क्रम मुगलों के काल में भी जारी रहा। → मेहराबों, गुंबदों तथा अरेबेस्क के प्रयोग में और भी कुशलता आई। → जहाँगीर के काल में भी फूलदार आकृतियों से सुसज्जित संगमरमर की इमारतों का निर्माण हुआ। → शाहजहाँ के काल में जडा़ऊ नक्काशी की पित्रादयुरा शैली का और भी विकास हुआ जिसका चरमोत्कर्ष ताजमहल में देखा जा सकता है। → मकबरा निर्माण में लोदीओं की चार बाग शैली के विकसित रूप को देखा जा सकता है । → आगरे का किला, फतेहपुर सिकरी की इमारतें, बुलंद दरवाजा , एत्मौद्दोला का मकबरा, ताज महल, दिल्ली का लाल किला , पंच महल, मोती मस्जिद और दिल्ली की जामा मस्जिद इस काल की महत्त्वपूर्ण इमारतें हैं।
→ मुगल साम्राज्य में भी संगीत का बड़ा प्रसार हुआ। अकबर के दरबारी गायक तानसेन ने कई नए रागों की रचना की। मुगल बादशाह औरंगजेब स्वयं एक सिद्ध वीणावादक था। शास्त्रीय भारतीय संगीत पर फारसी में सर्वाधिक पुस्तकें उसी के समय लिखी गई। मुहम्मदशाह के समय में संगीत का विकास चरमोत्कर्ष पर था।
→ अकबर के समय फारसी गद्य और कविता का चरमोत्कर्ष हुआ, अबुलफजल तथा फैजी इस भाषा के महान कवि थें। तुलसीदास के रामचरितमानस का व्यापक प्रसार हुआ। हिंदी में बिहारी, घनानंद, वृन्द जैसे महान कवि इसी काल से संबंधित थे। सिक्खों के पवित्र आदिग्रन्थ की रचना भी इसी काल में हुई।
→ धर्म के रूप में इस काल में सिख धर्म का तेजी से प्रसार हुआ सिख गुरुओं ने धर्म को नैतिकता से जोड़ते हुए नैतिकता का सामाजिक आधार व्यापक किया। अकबर द्वारा दीन-ए-इलाही की स्थापना की गई। तुकाराम जैसे संतो ने वर्ण के आधार पर सामाजिक असमानता का विरोध किया। यद्यपि हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों में रुढ़िवादी तत्वों का प्रभाव बढ़ा, जिससे धार्मिक सहिष्णुता में कमी आई। |
स्पष्ट है कि दिल्ली सल्तनत के समय के सांस्कृतिक विकास का क्रम मुगल साम्राज्य के दौरान और भी विकसित रूप में सामने आया।