18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आर्थिक व तकनीकी क्षेत्र में हुए व्यापक बदलाव के परिणामस्वरूप इंग्लैंड में परंपरागत उत्पादन प्रणाली को कारखानों के माध्यम से प्रतिस्थापित कर दिया गया। इन परिवर्तनों से आधुनिक व्यापार प्रणाली का विकास हुआ जिसने व्यापार और उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि की, इसे औद्योगिक क्रांति के नाम से जाना गया।
इतिहासकारों ने इसे मानव समाज को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली घटनाओं में से एक कहा है। इससे देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में कई तरह के परिवर्तन हुए-
→ औद्योगिक क्रांति ने सबसे पहले मानव के आर्थिक ढाँचे को प्रभावित किया। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और उत्पादन की परंपरागत व्यवस्था, उद्योग आधारित व्यवस्था में तब्दील हो गई। उत्पादन बढ़ने से इंग्लैण्ड एक औद्योगिक शक्ति के रूप में विश्व पटल पर उभरा और उसकी छवि निर्यातकर्त्ता देश के रूप में बनी। इससे शहरीकरण को बढ़ावा मिला और मैनचेस्टर, लीवरपूल, लीड्स आदि बड़े शहरों के रूप में स्थापित हुए। वृहत् स्तर पर उत्पादन के परिणामस्वरूप एकाधिकार की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला और असमान वितरण की प्रवृत्ति ने उत्पादकों और उपभोक्ताओं के प्रत्यक्ष संबंधों को बाधित कर दिया।
→ औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप सामाजिक आधार में भी परिवर्तन दिखाई दिये। इसने सामाजिक-संबंधों के जातिपरक, कुलपरक और वर्ग-आधारित संरचना में परिवर्तन लाकर आर्थिक मापदंड के आधार पर संबंधों को परिभाषित किया और समाज में दो नए-पूंजीपतियों और श्रमिक वर्ग का उदय हुआ। संबंधों के अर्थ-आधारित होने से समाज में असुरक्षा की भावना भी बढ़ी।
→ औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप कई तरह की नई सामाजिक और राजनीतिक समस्याएँ उत्पन्न हुईं, जिससे इंग्लैण्ड में प्रशासनिक कार्यों की प्रकृति में भी बदलाव आया। श्रमिकों की दशा और कार्य के घंटे आदि समस्याओं को लेकर कानून बनाए गए। इस तरह समाज में भूमिपतियों का बोलबाला कम हुआ, उभरते मध्यम वर्ग ने संसदीय सुधार की मांग की। इसी के परिणामस्वरूप 1867 में नगरीय और 1884 में ग्रामीण मज़दूरों को मताधिकार प्रदान किया गया।
→ इस तरह औद्योगिक क्रांति ने समाज के ढाँचे को बदलकर उसे अधिकारोन्मुख बनाया और विभिन्न संवैधानिक सुधारों के माध्यम से आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाया।