भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1920 का दशक समाज के उद्भव एवं विकास का दशक था। समाजवाद के विचार ने तत्कालीन युवा क्रांतिकारियों को विशेष तौर पर प्रभावित किया जिसकी झलक हमें भगत सिंह के विचारों में भी देखने को मिलती है। समाजवादी विचारों से कॉन्ग्रेस भी प्रभावित थी। विशेषकर कॉन्ग्रेस के युवा नेता व कार्यकर्ता कॉन्ग्रेस के कार्यों व लक्ष्यों को समाजवाद की ओर मोड़ना चाहते थे। कॉन्ग्रेस में समाजवाद के दो प्रमुख पैरोपकार जवाहरलाल नेहरू व सुभाष चंद्र बोस थे। दोनों का लक्ष्य भारत का समाजवादी रूपांतरण था, किंतु दोनों के विचारों में कुछ मूलभूत अंतर था, जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं में देख सकते हैं:
→ सुभाष चंद्र बोस हीगल के द्वंद्वात्मकता तथा मार्क्स के वर्ग संघर्ष को स्वीकार करते हैं। नेहरू भी हीगल व मार्क्स के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं, परंतु नेहरू के समाजवाद पर गांधीवाद का भी प्रभाव है।
→ नेहरू के समाजवाद पर पाश्चात्य तत्त्वों का गहरा प्रभाव था। वहीं सुभाष चंद्र बोस के समाजवाद पर पाश्चात्य के साथ-साथ देशी तत्त्वों का भी प्रभाव था। वे समाजवाद का तत्त्व वेद, पुराण, बौद्ध एवं जैन चिंतन तथा स्वामी विवेकानंद के विचारों में ढूंढते थे।
→ नेहरू व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बड़े समर्थक रहे हैं। वे समाजवाद एवं पाश्चात्य उदारवादी चिंतन के बीच सामंजस्य स्थापित कर चलना चाहते थे। इसके विपरीत सुभाष राज्य की शक्ति पर अत्यधिक बल देते थे।
→ नेहरू संसदीय संस्थाओं के माध्यम से समाजवादी रूपांतरण लाना चाहते थे। इससे अलग सुभाष कम-से-कम समाजवादी रूपांतरण के आरंभिक चरण में संसदीय राजनीति में विश्वास नहीं रखते थे। स्वतंत्रता के शीघ्र बाद वे एक दल की तानाशाही के पक्षपाती थे, परंतु यह तानाशाही केवल संक्रमण काल के लिये होनी चाहिये तथा समाजवादी लक्ष्य पूरा होने के बाद प्रजातांत्रिक संस्थाओं को स्थापित कर दी जाए।
→ उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है नेहरू व सुभाष दोनों का लक्ष्य एक समतामूलक समाजवादी भारत का निर्माण करना था, परंतु इस लक्ष्य प्राप्ति के लिये किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिये इस पर मतभेद था।