GS Paper-2 Indian Polity (राजव्यवस्था) Part-1 (Q.40)

GS PAPER-2 (भारतीय राजनीति) Q-40
 
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Q.40 - मंत्रिमंडल का आकार उतना होना चाहिये कि सरकारी कार्य सही ढंग से हो सकें और उसको उतना बड़ा होना चाहिये कि प्रधानमंत्री द्वारा उसका एक टीम के रूप में संचालन किया जा सके। सरकार की दक्षता किस सीमा तक मंत्रिमंडल के आकार से प्रतिलोमत: संबंधित है? चर्चा कीजिये।
उत्तर :
भूमिका:
संविधान के अनुच्छेद 74 का जिक्र -
       मंत्रियों की संख्या कितनी होनी चाहिये, इसका कोई एक निश्चित आधार तय नहीं किया जा सकता है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 74 जो मंत्रिपरिषद से संबंधित है, इसमें भी मंत्रिमपरिषद की कोई निश्चित संख्या या आकार का उल्लेख नहीं है।
विषय-वस्तु:
91वें संविधान संशोधन की चर्चा -
  91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा, मंत्रिपरिषद के आकार को निश्चित कर दिया गया। इसके अनुसार केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। जहाँ तक मंत्रिमंडल के उचित आकार का सवाल है तो यह कई कारकों के आधार पर निश्चित किया जाता है। 1974 में बने प्रथम मंत्रिमडल में जहाँ 25 से भी कम मंत्री शामिल थे, वहीं वर्तमान सरकार में 70 से भी अधिक मंत्री हैं। सरकार का स्वरूप, गठबंधन का स्वरूप, सरकार के कार्य, कार्य की विविधता आदि इस अंतर के प्रमुख कारण हैं।
  सरकार की कार्यशैली, उसकी तीव्रता, एकरूपता आदि कारकों पर मंत्रिमंडल की संरचना अर्थात् उसके आकार का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। यदि मंत्रिमंडल का आकर सामान्य से ज़्यादा बड़ा हो अथवा सामान्य से छोटा हो, तो दोनों ही स्थिति नकारात्म्क प्रभाव उत्पन्न करती है।
मंत्रिपरिषद के सामान्य से बडे़ और छोटे आकार के नकारात्मक पक्षों पर चर्चा -
सामान्य से बडे़ मंत्रिमंडल के दोष-
  सरकार के प्रमुख को विभिन्न मंत्रियों के मध्य समन्वय स्थापित करने तथा उनके द्वारा किये गए कार्यों की फीडबैक मांगने में समस्या आती है।
  मंत्रिमंडल का प्रत्येक सदस्य किसी--किसी मंत्रालय का प्रमुख होता है। अगर मंत्रिमंडल का आकार बड़ा होगा तो अधिक-से-अधिक मंत्रालय बनाने होंगे। यह उनके कार्यों में दोहराव एवं अतिव्यापन की स्थिति पैदा करेगा तथा आपसी द्वंद्व को भी उत्पन्न करता है। इससे कार्यों के निष्पादन की निष्पक्ष ज़िम्मेदारी तय नहीं हो पाएगी।
  मंत्रिमंडल के बडे़ आकार के चलते राजस्व व्यय में वृद्धि होती है तथा प्रशासनिक शिथिलता बढ़ती है।
 अगर मंत्रिमंडल का आकार सामान्य से छोटा है तो भी उसका नकारात्मक प्रभाव सरकार की कार्यशैली पर पड़ता है। इसके निम्नलिखित दोष हैं-
  मंत्रिमंडल का आकार छोटा होने से संपादित होने वाले कार्यों पर दबाव पड़ता है, इसके चलते कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  लोकतंत्र की अवधारणा में सभी वर्गों का समुचित प्रतिनिधित्व होना चाहिये, तभी सामाजिक न्याय की संकल्पना साकार हो पाएगी। अगर मंत्रिमंडल का आकार छोटा होता है तो समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है। इससे सामाजिक न्याय की अवधारणा को चोट पहुँचती है।
  एक ही मंत्री के ऊपर कई मंत्रालयों का भार होने से वह सभी मंत्रालयों के साथ न्याय नहीं कर पाता है तथा इसमें कार्य विशेषज्ञता का भी अभाव दिखता है।
निष्कर्ष
       सरकार को अपने कार्यों की गुणवत्ता पूर्ण एवं सफल संचालन के लिये संतुलित मंत्रिमंडल का निर्माण करना चाहिये ताकि सरकार के कार्य में दक्षता एवं तेज़ी आए। इससे विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों में उचित समन्वय बना रहता है एवं कार्य के बोझ या दोहरीकरण की समस्या से राहत मिलती है तथा लोकतांत्रिक विकास में सहायता मिलती है।

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