भूमिका:
बाल कृष्ण समिति ने सुझाव दिया था कि दिल्ली को संघ राज्य क्षेत्र ही बनाए रखा जाना चाहिये, किंतु उसके लिये एक विधानसभा और मंत्रिपरिषद् की व्यवस्था की जानी चाहिये। यह भी सुझाव दिया गया कि इन परिवर्तनों को मज़बूती और स्थायित्व प्रदान करने के लिये इन्हें संविधान में शामिल किया जाना चाहिये। लेकिन लोक व्यवस्था और पुलिस जैसे विषय को राज्य विधानसभा के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखने की बात की गयी थी।
साथ ही, जिन विषयों पर दिल्ली की स्थानीय सरकार को शक्ति दी गयी उन पर उपराज्यपाल से समन्वय स्थापित कर उन्हे पूरा करने की अपेक्षा की गयी। वर्तमान विवाद का मुख्य मुद्दा इसी समन्वय को लेकर है।
विषय-वस्तु
→ समिति की सिफारिशों के आधार पर संसद ने 69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद-239 कक तथा 239 कख शामिल करके इसमें दिल्ली से संबंधित नए प्रावधान किये।
→ साथ ही संसद ने अनुच्छेद-239 कक के प्रवधानों का अनुसरण करते हुए दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र अधिनियम, 1991 पारित किया। इसी अधिनियम तथा अनुच्छेद-239 कक, 239 कख तथा अनुच्छेद-239ख में निर्दिष्ट प्रावधानों के अनुसार वर्तमान में दिल्ली का प्रशासन चलाया जाता है।
चुनी हुयी सरकार की सर्वश्रेष्ठता के पक्ष में तर्क
→ दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है परंतु दिल्ली की स्थिति अन्य केंद्र-शासति प्रदेशों जैसी भी नहीं है। 69वें संविधान संशोधन द्वारा दिल्ली के प्रशासन के संदर्भ में संविधान में जोड़े गए दो अनुच्छेदों यथा 239 कक और 239 कख का मूल यही था कि दिल्ली में विधानसभा की स्थापना की जाए।
→ ‘नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन बनाम पंजाब राज्य’ के मामले में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा उपर्युक्त मत की पृष्टि भी की जा चुकी है।
→ दिल्ली की विशिष्ट स्थिति पर गौर करे तो यहाँ जिस वेस्टमिन्सटर पद्धति को अपनाया गया है उसमें चुनी हुई सरकार ही सर्वोपरि होती है। यही व्यवस्था पूरे देश में है। इसे देखते हुए दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार के ऊपर मनोनीत सरकार को वरीयता कैसे दी जा सकती है? यह संवैधानिक मूल्यों के विपरीत होगा।
→ संवैधानिक प्रावधानों पर गौर करने पर पाते है कि यह राज्यपाल को भी सीमित शक्ति प्रदान करती है। क्योंकि 239 कक के द्वारा Assist and Advice को बदलकर Aid and Advice कर दिया गया गया। इसलिये उपराज्यपाल द्वारा हर मामले को अपने पास अनुमति के लिये मांगना असंवैधानिक है।
→ अनुच्छेद-239 कक (3) यह प्रावधान करता है कि दिल्ली विधानसभा पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था छोड़कर राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है, वहीं अनुच्छेद-239 कक (4) मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली सरकार को यह शक्ति देता है कि वह विधायिका को प्राप्त शक्तियों का अनुप्रयोग करें।
उपराज्यपाल की सर्वश्रेष्ठता के पक्ष में तर्क
→ चूँकि दिल्ली की स्थिति विशिष्ट है इसलिये यहाँ उपराज्यपाल को विशिष्ट अधिकार प्रदान किये गए है।
→ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली ऐसी विशिष्टताओं से युक्त है कि इस पर केंद्र सरकार का प्रभावी नियंत्रण आवश्यक है और 69वाँ संविधान संशोधन इस बात की पुष्टि करता है।
→ 239 कक यद्यपि दिल्ली में विधानसभा की स्थापना करता है तथापि इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि इससे दिल्ली के संबंध में कोई कानून बना सकने की संसद की शक्ति में कोई कमी नहीं आएगी। राष्ट्रपति अभी भी यहाँ का कार्यपालिका प्रमुख है जो उपराज्यपल के माध्यम से अपने दायित्वों का निर्वहन करता है।
→ वस्तुत: अनुच्छेद-239 संविधान का अभिन्न हिस्सा है जिसमें राष्ट्रपति को दिल्ली का प्रमुख माना गया है, इसलिये अनुच्छेद-239 कक को 239 के साथ मिलाकर देखा जाना चाहिये।
→ संविधान में कही भी यह नहीं लिखा है कि संघ राज्यक्षेत्र की कार्यपालिका शक्ति मंत्रिपरिषद् में निहित होगी।
→ अनुच्छेद-239 कक (4) में प्रयुक्त भाषा-उपराज्यपाल और उसकी मंत्रिपरिषद, पर गौर करने पर स्पष्ट होता है कि दिल्ली के प्रशासन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उपराज्यपाल को दी गयी है।
→ दिल्ली के प्रशासन के संबंध में राष्ट्रपति ही कार्यपालिका प्रमुख होता है। इसकी स्पष्टता अनुच्छेद-356 और अनुच्छेद-239 कख में प्रयुक्त भाषा में अंतर से दिख जाती है।
→ उपर्युक्त विवादों के तहत सर्वोच्च न्यायालय की पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने निर्णय दिया कि वर्तमान मामले में संविधान की उद्देश्यपरक व्याख्या आवश्यक है। यद्यपि सर्वोच्च न्यायालय ने उपराज्यपल की शक्तियों को सीमित किया है परंतु इसका आशय नहीं होगा कि दिल्ली सरकार को असीमित अधिकार प्राप्त हो गए है और न ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने उपाय के रूप में समन्वयन को ही सर्वोच्चता दी है।
निष्कर्ष
अंत में संक्षिप्त, संतुलित एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें-