→ गुप्तकाल संस्कृत एवं साहित्य के विकास के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण काल रहा। संस्कृत अभिजात्य वर्ग की प्रमुख भाषा बन गई। प्रकृत भाषा का प्रयोग निम्न सामाजिक स्तर के लोगों द्वारा किया जाता था।
→ इस काल में संस्कृत भाषा में अनेक धार्मिक ग्रंथों, नाटकों एवं प्रशस्तियों की रचना हुई। कालिदास ने ऋतुसंहार, मेघदूतम, रघुवंशम, जैसे काव्यों तथा अभिज्ञानशाकुन्तलम्, मालिविकग्निमिनम् जैसे नाटकों की रचना की। शूद्रक ने मृच्छकटिकटम, विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस एवं देवीचंद्रगुप्तम्, वात्सयायन ने कामसूत्र तथा विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की रचना की।
→ रामायण तथा महाभारत का अंतिम रूप से संकलन अनेक पुराणों तथा स्मृति ग्रंथों की रचना इस काल में हुई। हरिषेण द्वारा रचित समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति तथा वासुकी द्वारा मंदसौर प्रशस्ति की रचना इसी काल में हुई।
→ कई बौद्ध ग्रंथों जैसे- असंग की योगाचार भूमिशास्त्र, वसुबंध की अभिधम्मघोष की रचना भी इस काल में हुई।
→ गुप्त काल में विज्ञान एवं तकनीक का विकासः
→ आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कर, ब्रह्मगुप्त जैसे प्रमुख विद्वान इस काल में विज्ञान एवं तकनीकी के विकास से संबंद्ध थे। आर्यभट्ट ने ज्योतिष तथा सूर्यग्रहण का सिद्धांत दिया।
→ भास्कर प्रथम खगोलशस्त्री थे जिनका प्रमुख ग्रंथ भास्कराचार्य है। वराहमिहिर ने पंचद्धिान्तिका, वृहत्संहिता जैसे ग्रंथों की रचना कर ज्योतिष के महत्त्व को प्रतिपादित किया।
→ अष्टांग हृदय की रचना इसी काल में हुई। हाथियों की चिकित्सा पर हस्तायुर्वेद की रचना की गई। बौद्ध दार्शनिक नागर्जुन रसायन तथा धातु विज्ञान के जानकार थे। धन्वंतरि इस काल के प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य थे। दिल्ली का लौह स्तंभ इस काल की धातु तकनीक का उत्कृष्टतम उदाहरण है।