o उन्नीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षों से प्रारम्भ हुआ ‘भारतीय पुनर्जागरण’ उन्नीसवीं सदी के उतरार्द्ध में अपने चरम पर था। एक तरफ ‘हिन्दू धर्म’ लगातार सुधारवादी लक्ष्यों की ओर प्रेरित था तो वहीं दूसरी ओर ‘इस्लाम’ के सन्दर्भ में विडंबना यह थी कि सुधारवादी आंदोलन एवं पुनरुत्थानवादी आंदोलन एक समय में ही चल रहे थे।
o सुधारवादी आंदोलन जहाँ इस्लाम को प्राचीन रुढ़ियों से मुक्त कर पाश्चात्य शिक्षा एवं मूल्य के समावेशन पर बल दे रहे थे तो वहीं पुनरुत्थानवादी आंदोलन इस्माल की शुद्धता पर बल देते हुए पश्चिमी प्रभाव का विरोध कर रहे थे।
o इस सन्दर्भ में वहाबी आंदोलन, अलीगढ़ आंदोलन तथा देवबंद आंदोलन का उदाहरण सटीक है। वहाबी आंदोलन तथा देवबंद आंदोलन जहाँ पुनरुत्थान पर बल दे रहे थे वहीं सर सैय्यद अहमद खाँ के नेतृत्व में अलीगढ़ आंदोलन सुधारवाद की ओर लक्षित था। इन आंदोलनों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-
o वहाबी आंदोलन के प्रवर्तक रायबरेली के सैय्यद अहमद थे, जो इस्लाम में हुए सभी परिवर्तनों एवं सुधारों के विरुद्ध थे, उन्होंने हजरत मुहम्मद साहब के समय के इस्लाम को पुनः स्थापित करने के क्रम में तथा भारत को ‘दार-उल-हर्ब’ से ‘दार-उल-इस्लाम’ में परिवर्तित करने के लिये पंजाब के सिक्खों के विरुद्ध जेहाद की घोषणा की।
o वहाबी आंदोलन की भाँति देवबंद आंदोलन भी पुनरुत्थानवादी आंदोलन था। इसने मुसलमानों में कुरान एवं हदीस की शुद्ध शिक्षा के प्रसार तथा विदेशी शासकों के विरुद्ध ‘जेहाद’ की भावना को जीवित रखने पर बल दिया। यह आंदोलन अपने स्वरूप में इतना अधिक कठोर एवं रूढ़िवादी था कि इसने सुधारवादी ‘अलीगढ़ आंदोलन’ का तीव्र विरोध किया।
o इन दोनों आंदोलनों से इतर 19वीं सदी के उतरार्द्ध में सर सैय्यद अहमद खाँ द्वारा इस्लाम सुधारवादी आंदोलन भी चलाया गया। इस आंदोलन ने इस्लाम की सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, पीरी-मुरीदी की प्रथा समाप्त करने, दास प्रथा समाप्त करने पर बल दिया। इस आंदोलन के अंतर्गत मुस्लिम ऐंग्लो ओरियन्टल स्कूल प्रारम्भ किया गया जहाँ पाश्चात्य विषय तथा विज्ञान और मुस्लिम धर्म दोनों पढ़ाए जाते थे।
अतः स्पष्ट है कि 19वीं सदी के मध्य एवं उतरार्द्ध में इस्लाम आंदोलन के दो विपरीत रूप देखने को मिले। इन दोनों का मिश्रित स्वरूप ही भारत के ‘आधुनिक इस्लाम’ का आधार बना।